बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सजा- ए - मौत


बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सजा- ए - मौत 

दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश एक छोटा सा देश है,
लेकिन इसकी राजनीति में तूफ़ान खड़ा करने वाली एक बड़ी हस्ती रही है।
एक महिला जिसने अपने जीवन के सबसे दर्दनाक हादसों को ताक़त में बदल दिया।
एक नेता जिसने अपने परिवार को खोने के बावजूद देश को मजबूत बनाने की क़सम खाई।

यह वही शेख हसीना हैं, जिनका चेहरा 1996 से 2001 और 2009 से 2024 तक प्रधानमंत्री के रूप में बांग्लादेश की सत्ता का पर्याय बन गया।

उनकी कहानी सिर्फ राजनीति नहीं है,
बल्कि संघर्ष, साहस, सत्ता और आरोपों की वह यात्रा है,
जिसने पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति का रंग ही बदल दिया।
कुछ लोग उन्हें ‘देश की रक्षक’ कहते हैं,
तो कुछ लोग ‘तानाशाह’।

जिसकी वजह से 2024 में चुनाव जीतने के बावजूद
शेख हसीना 8 महीने के अंदर इस्तीफा देकर देश छोड़ गईं।

17 नवंबर 2025 को बांग्लादेश इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (ICT) की तीन सदस्यीय पीठ ने बांग्लादेश की पूर्व 
शेख हसीना पर फांसी की सजा सुनाई।
फैसले के बाद जहां एक तरफ खुशी थी, वहीं समर्थकों का विरोध और हिंसक प्रदर्शन भी शुरू हो गया।


बांग्लादेश छात्र आंदोलन एवं जुलाई नरसंहार:- 

साल 2024 में बांग्लादेश की सड़कों पर एक आवाज़ गूंज उठी
हजारों छात्रों ने ‘क्वोटा सुधार’ (आरक्षण)की मांग की।
धीरे-धीरे यह आंदोलन एक आग की लपट बन गया जिसने देश की राजनीति हिला दी।
- 2 जुलाई को भारी बारिश के बीच छात्र सड़कों पर उतर आए,
चौराहों को जाम किया और राजधानी ढाका को घेर लिया।
- 3 जुलाई तक आंदोलन पूरे देश में फैल चुका था।
हर कॉलेज और यूनिवर्सिटी में यही नारा गूंजा:
“भेदभाव नहीं चलेगा!”

- 4–6 जुलाई के बीच सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद छात्रों का आंदोलन और उग्र हो गया।
सरकार ने इसे ‘राजनीतिक साज़िश’ बताना शुरू किया,
पुलिस ने छात्रों पर कार्रवाई की, लाठीचार्ज और टियर गैस का इस्तेमाल हुआ,
कई लोगों को गिरफ्तार किया गया, और इंटरनेट शटडाउन कर दिया गया।
UN रिपोर्ट के अनुसार इस बांग्लादेश छात्र हिंसा में 1,400 से ज्यादा लोग मारे गए,
24,00 से अधिक लोग घायल हुए।
बांग्लादेश में इसे “जुलाई नरसंहार” के नाम से जाना गया।



शेख हसीना ने अपना देश बांग्लादेश क्यों छोड़ा ?

जैसे-जैसे आंदोलन बढ़ा, सरकार की पकड़ ढीली होती चली गई।
26 जुलाई को मुख्य विपक्षी दल ने छात्रों का खुला समर्थन किया।
28 जुलाई को एक विवादित वीडियो सामने आया,
लेकिन छात्र नेताओं ने इसे दबाव में रिकॉर्ड किया गया बताया।
सड़कों पर भीड़ लाखों में पहुंच गई और जुलाई के आखिरी दिनों में हालात नियंत्रण से बाहर हो गए।
सरकार के अंदर भी मतभेद गहराए।
कुछ सलाहकारों ने कहा कि सुरक्षा कारणों से प्रधानमंत्री को देश छोड़ना चाहिए।
और आखिरकार 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देकर , गुप्त रूप से बांग्लादेश छोड़कर भारत चली गईं।

ICT के शेख हसीना पर पांच आरोप :- 

1. विपक्षी नेताओं को जबरन गायब करवाना।
2. 12 मई 2025 की जांच रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा के दौरान हत्याओं के आदेश देना,
जिसमें 1,400 लोग मारे गए और लगभग 25,000 घायल हुए।
3. बेगम रोकैया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सईद की हत्या करवाना।
4. ढाका के चंखर पुल में 6 लोगों की हत्या।
5. मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम के मुताबिक कुल 13 लोगों की हत्या,
जिसमें अशुलिया में 5 लोगों की गोली मारकर हत्या और शवों को जलाना शामिल है,और एक व्यक्ति को जिंदा आग में फेंक देना।

शेख हसीना ने इन आरोपों को निराधार बताया है।

अब सवाल यह उठता है—बांग्लादेश भारत से शेख हसीना को प्रत्यर्पित करवाने के लिए दबाव बना रहा है।
भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 की प्रत्यर्पण संधि लागू है,
लेकिन इसके कई नियम हैं।

भारत-बांग्लादेश के मध्य 2013 प्रत्यर्पण संधि :- 

1.राजनीतिक मामलों में प्रत्यर्पण नहीं होता।
2.अगर किसी को दूसरे देश में फांसी का खतरा हो, तो भारत मानवाधिकारों के आधार पर प्रत्यर्पण रोक सकता है।
3.भारत की अदालतें खुद जांच करेंगी कि यह फैसला न्यायिक है या राजनीतिक बदला।

और चूंकि शेख हसीना का केस पूरी तरह राजनीतिक माना जा रहा है,
भारत उन्हें शरण भी दे सकता है और तुरंत बांग्लादेश नहीं भेजेगा।

तो सवाल यह है—क्या यह फैसला न्याय है, या राजनीति की सोची-समझी साज़िश?

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